हाथरस भगदड़ और बढ़ती अंधविश्वास की छाया
हाथरस भगदड़: अनियंत्रित भीड़ और अव्यवस्था
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हाल ही में एक भयानक भगदड़ की घटना सामने आई। श्री जागर गुरु बाबा संगठन के तत्वावधान में आयोजित इस धार्मिक सभा में सैकड़ों-हजारों लोगों ने भाग लिया। अनुमान से कहीं अधिक संख्या में लोग पहुंचे थे जबकि प्रशासन ने केवल 80,000 लोगों के शामिल होने की अनुमति दी थी। लगभग 250,000 से अधिक लोग इस आयोजन में शामिल होने आ पहुंचे थे।
भगदड़ की घटना तब शुरू हुई जब भोल बाबा मंच से बाहर निकले। उन्हे देखने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हज़ारों की भीड़ अचानक मंच की तरफ दौड़ पड़ी। इस अप्रत्याशित भीड़ ने अचानक भगदड़ को जन्म दिया।
इस विनाशकारी घटना में कम से कम 121 लोगों की मृत्यु हो गई जिसमें अधिकांश महिलाएं थीं। स्थिति और भी विकट तब हुई जब बारिश और किचड़ ने मार्गों को और जोखिमपूर्ण बना दिया। नतीजतन, न केवल अव्यवस्था फैल गई बल्कि स्थान पर निकासी मार्ग भी अपर्याप्त थे।
अंधविश्वास और तर्कहीनता का बढ़ता प्रभाव
यह हादसा केवल भीड़ नियंत्रण की विफलता का नहीं बल्कि समाज में बढ़ते अंधविश्वास और तर्कहीनता का भी एक प्रमाण है। धार्मिक नेताओं का देश में एक बहुत बड़ा प्रभाव है। इनमें से कई धार्मिक नेता राजनीतिक दृष्टिकोण से भी मजबूत होते है और इन्हें अक्सर जवाबदेही से बचा लिया जाता है।
हाथरस हादसे से स्पष्ट हो गया कि समाज में अंधविश्वास का कद कितना बढ़ चुका है। केवल धार्मिक मान्यताओं के चलते इस तरह की भयानक दुर्घटनाएं हो सकती हैं। कई बार ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन बिना पर्याप्त सुरक्षा मानकों के किया जाता है और भारी संख्या में भीड़ इकट्ठा हो जाती है।
बाबा-क्रोषी: एक नई समस्य
आज के समय में कई धार्मिक नेता, जो समाज में भोल बाबा जैसे 'बाबा' के रूप में जाने जाते हैं, का प्रभाव बहुत बढ़ चुका है। इसे 'बाबा-क्रोषी' कहा जा सकता है, जहाँ ये धार्मिक नेता किसी भी बड़े मुद्दे पर फैसले लेते हैं या अपने अनुयायियों को प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार के धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा के उपायों का अभाव और आपातकालीन परिस्थितियों के लिए कोई योजना न होना एक महत्वपूर्ण समस्या है। बिना प्लानिंग और आव्योस्था के संचालन किए जाने वाले ऐसे आयोजनों का परिणाम हमेशा विध्वंशकारी होता है और इसका सबसे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण है हाथरस की घटना।
न्याय और जवाबदेही की आवश्यकता
हाथरस भगदड़ की घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर किस तरह से देश में अंधविश्वास और तर्कहीनता पर सवाल उठाया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि इस मामले की गहन जांच की जाए और दोषियों को उत्तरदायी ठहराया जाए।
संघटक संगठनों और अधिकारियों दोनों को ही यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति न हो सके। इसके लिए प्रशासन को कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा और जनता को भी सतर्क रहना होगा।
समाज में तर्कसंगतता की जगह
अंत में, इस तरह के हादसे यह स्पष्ट दर्शाते हैं कि हमें अंधविश्वास के बजाय तर्क और विज्ञान के आधार पर समाज में निर्णय और सत्ता के संचालन को फिर से स्थापित करना होगा।
ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएँ ना हों। इसके लिए समाज के हर वर्ग को अपना जिम्मेदार योगदान देना होगा।