प्रीति पाल ने पेरिस पैरालंपिक्स में जीता ऐतिहासिक T35 100मी ब्रॉन्ज, देश के नाम किया पहला ट्रैक मेडल
प्रीति पाल का अद्वितीय सफर
23 वर्षीय प्रीति पाल ने पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में जो कर दिखाया वह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। महिला T35 100मी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर प्रीति ने इतिहास रच दिया। उनका समय 14.21 सेकंड था, जो उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ भी था। यह पदक भारत के लिए पहला ट्रैक इवेंट में पैरालंपिक पदक था।
प्रीति का सफर आसान नहीं था। जन्म के समय से ही उनके पैरों में कमजोरी और असामान्य स्थिति ने उन्हें कैलिपर्स पर निर्भर बना दिया था। आठ साल तक उन्होंने कैलिपर्स पहन कर ही चलने की कोशिश की। बावजूद इसके, प्रीति ने हार नहीं मानी और मुश्किल हालातों का डटकर सामना किया।
प्रीति को प्रेरणा मिली जब उन्होंने 17 साल की उम्र में सोशल मीडिया पर पैरालंपिक खेलों को देखा। इन खेलों से प्रभावित होकर, उन्होंने खुद को एथलेटिक्स में साबित करने की ठानी। दिल्ली में कोच गजेंद्र सिंह की देखरेख में, प्रीति ने अपनी रनिंग तकनीक को निखारने पर खास जोर दिया।
पेरिस पैरालंपिक्स का मार्ग
2024 की शुरुआत में, प्रीति ने वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 100मी और 200मी इवेंट्स में भी कांस्य पदक जीते थे, जिससे उनका चयन पेरिस पैरालंपिक्स के लिए सुनिश्चित हो गया। पेरिस में पदक जीतने के बाद, प्रीति ने अपने देश का नाम रोशन किया और यह संदेश दिया कि कोई भी शारीरिक बाधा आपके सपनों के रास्ते में नहीं आ सकती, अगर आप दृढ़ संकल्प और मेहनत से प्रयास करें।
पेरिस पैरालंपिक्स में पदक जीतने का यह सफर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि ही नहीं, बल्कि उम्मीदों की किरण भी है। प्रीति की यह सफलता हमें याद दिलाती है कि कुछ भी असंभव नहीं है। उनकी कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह अन्य युवाओं के लिए भी एक मार्गदर्शिका है, जो जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
प्रेरणा के स्रोत
प्रीति पाल का खेल मैदान में प्रवेश बहुत ही संजीदा था। पैरालंपिक्स 2024 में उनका योगदान सिर्फ पदक जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी सामाजिक बदलाव का प्रतीक है। भारतीय समाज में विकलांगों को मूकदर्शक के रूप में देखे जाने की मानसिकता को प्रीति ने अपने प्रदर्शन से बदलने की कोशिश की है।
उनकी मेहनत और समर्पण का ही परिणाम है कि वह आज इस मुकाम पर हैं। उनका हर कदम हमें यह सिखाता है कि कभी हार मत मानो, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। उनकी यह यात्रा हमें न केवल खेल के महत्व को समझने में मदद करती है बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में धैर्य, मेहनत और समर्पण की अहमियत को भी बताती है।
भविष्य की योजनाएं
प्रीति पाल अपने इस ऐतिहासिक पदक को भविष्य की असंख्य उपलब्धियों की पहली सीढ़ी के रूप में देखती हैं। वह कहती हैं कि यह तो सिर्फ शुरुआत है, और वह आगे और भी कई उपलब्धियां हासिल करना चाहती हैं।
उनके कोच गजेंद्र सिंह ने बताया कि प्रीति की भविष्य की योजनाओं में 2028 लॉस एंजिलिस पैरालंपिक्स में स्वर्ण पदक जीतना शामिल है। इसके लिए उन्होंने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रीति का मानना है कि तकनीकी सुधार और मानसिक मजबूती उनके खेल में और भी ज्यादा निखार ला सकते हैं।
साथ ही, वह युवाओं को प्रेरित करने के लिए काम करना चाहती हैं, ताकि कोई भी बच्चा अपने सपनों को अधूरा न छोड़े। प्रीति के लिए यह कदम सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि एक सामूहिक यात्रा की शुरुआत है, जिसमें वह सभी युवाओं को उनसे जुड़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं।
खेल-महत्व और समाज में बदलाव
प्रीति की इस असाधारण सफलता ने भारतीय खेल जगत में एक नया इतिहास जोड़ दिया है। इसका प्रभाव सिर्फ खेलों तक नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता में बदलाव लाने में भी होगा। उनके इस जीत ने विकलांगता को एक चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखने का दृष्टिकोण दिया है।
यह जीत भारतीय एथलेटिक्स के लिए तो मील का पत्थर है ही, साथ ही, समाज के हर वर्ग के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है कि विकलांगता सफलता की राह में बाधा नहीं, बल्कि एक नई दिशा देने वाला तत्व हो सकता है।
उन्होंने दिखा दिया कि किसी भी प्रकार की शारीरिक कमजोरी आपके आत्मविश्वास और मेहनत के सामने टिक नहीं सकती। प्रीति पाल का यह संघर्ष और उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी रहेगी।
निष्कर्ष
प्रीति पाल की यह ऐतिहासिक जीत महज एक पदक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अभिलाषाओं, उम्मीदों और संघर्ष की कहानी है। प्रीति ने साबित किया कि अगर आपके पास सच्ची प्रेरणा, मेहनत और सही दिशा-निर्देश हैं, तो कोई भी चीज नामुमकिन नहीं है।
पारंपरिक बाधाओं को पार कर, अपने सपनों की नई ऊँचाइयों को छूने की यह कहानी हम सभी के लिए एक शिक्षा के समान है। भारतीय खेल जगत को प्रीति जैसे नायकों की और भी जरूरत है, जो अगली पीढ़ियों को नए आयाम देने की क्षमता रखते हैं।
10 टिप्पणि
Antara Anandita
अगस्त 31 2024प्रीति की मेहनत और लगन को देखकर लगता है कि शारीरिक सीमाएं तो सिर्फ एक रिपोर्ट होती हैं। उनकी टेक्निक और मानसिक ताकत दोनों ही अद्भुत हैं। भारत को ऐसे खिलाड़ियों की जरूरत है जो सिर्फ जीत नहीं, बल्कि बदलाव लाएं।
कोच गजेंद्र सिंह की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने सिर्फ दौड़ना नहीं सिखाया, बल्कि खुद को विश्वास दिलाना सिखाया।
Gaurav Singh
सितंबर 1 2024अरे यार ये सब बहुत अच्छा लगा पर अब बताओ इसके बाद क्या हुआ क्या उनका खेल अब टीवी पर चलेगा या फिर वो भी बस एक ट्रेंड बन जाएगी जैसे कि एक बार देखकर फिर कोई नहीं पूछता
Priyanshu Patel
सितंबर 3 2024बस इतना कहूं कि जब उन्होंने शुरुआत की तो किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन भारत का पहला ट्रैक मेडल इतने नाजुक पैरों से जीता जाएगा 😭
प्रीति ने सिर्फ पदक नहीं जीता बल्कि हर उस बच्चे के दिल में आग लगा दी जो सोचता है उसके पैर उसे रोक रहे हैं। अब तो हर बच्चा अपने घर के कोने में दौड़ने की कोशिश करेगा।
ashish bhilawekar
सितंबर 4 2024माई गॉड ये लड़की तो एक जिंदगी भर का संघर्ष एक ही दौड़ में जीत गई 🤯
उसके पैरों में कैलिपर्स थे लेकिन दिल में बिजली थी। जब उसने लाइन पर खड़े होकर देखा तो दुनिया ने उसकी आंखों में जो चमक देखी वो कोई चांदी या कांस्य नहीं थी... वो तो आत्मविश्वास की ज्वाला थी।
अब तो ये देश इसके लिए एक स्टेडियम भी बना दे ना बस एक बार के लिए उसके नाम पर।
Vishnu Nair
सितंबर 5 2024ये सब बहुत अच्छा है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पैरालंपिक्स का फंडिंग असल में किसके हाथों में है? क्या ये सब एक ग्लोबल स्पोर्ट्स इंडस्ट्री का लॉबींग प्रोग्राम है जो देशों को अपनी ओर खींचने के लिए इन अद्भुत कहानियों को बनाता है? मैंने देखा है कि जब कोई विकलांग एथलीट जीतता है तो उसके बाद उसकी फोटो और वीडियो दुनिया भर में शेयर होते हैं लेकिन उसके लिए एक स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर कहां है? ये सब एक एमोशनल डिस्ट्रैक्शन है जो हमें वास्तविक समस्याओं से दूर रखता है।
Kamal Singh
सितंबर 5 2024प्रीति की ये जीत सिर्फ एक एथलीट की जीत नहीं है। ये उन सभी बच्चों की जीत है जो अपने घर में खुद को कमजोर समझते हैं।
उनकी कहानी सिर्फ एक दौड़ की नहीं, एक नई नैतिकता की है। जहां शारीरिक असमानता को एक निर्धारित सीमा नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखा जाए।
अगर हम इस बच्ची को उसकी शुरुआत से लेकर आज तक देखें तो पता चलता है कि असली जीत तो उस दिन हुई जब उसने खुद को एक एथलीट के रूप में पहचाना।
Jasmeet Johal
सितंबर 7 2024पदक तो हर किसी को मिलता है लेकिन ये सब नाटक क्यों किया जा रहा है
Abdul Kareem
सितंबर 7 2024मैंने उनकी दौड़ का वीडियो देखा। उनकी शुरुआत बहुत धीमी थी लेकिन आखिरी 30 मीटर में उनकी गति और तेज़ी ने मुझे हैरान कर दिया। उनकी तकनीक में एक अजीब सी शांति है। जैसे वो दौड़ नहीं रहीं बल्कि उनका शरीर खुद अपनी गति को ढूंढ रहा है।
Namrata Kaur
सितंबर 7 2024ये लड़की असली हीरो है।
indra maley
सितंबर 8 2024क्या ये जीत वाकई उसकी है या हमारी इच्छा की जो हम एक आदर्श बनाना चाहते हैं? क्या हम उसे देख रहे हैं या अपने अपने भावों को उस पर चढ़ा रहे हैं? उसकी आंखों में जो देखते हैं वो शायद हमारी खुद की आशा है।
अगर वो नहीं जीतती तो क्या हम उसे याद करते? ये सवाल मुझे बहुत गहरा लगता है।