चिपमेकर: भारत में सेमीकंडक्टर की दुनिया
जब आप मोबाइल, लैपटॉप या कार की बात करते हैं, तो पीछे की शक्ति चिपमेकर की बनायी़ हुई सिलिकॉन चिप होती है। ये छोटे‑छोटे सर्किट बिना इसके नहीं चलते। आजकल हर कोई इस industry को लेकर चर्चा करता है, इसलिए इस लेख में हम समझेंगे कि चिपमेकर कौन हैं, क्यों ज़रूरी है और भारत में इस क्षेत्र में क्या हो रहा है।
सेमीकंडक्टर की वैश्विक स्थिति
दुनिया भर में चिप की मांग आज के स्तर से दो‑तीन गुना बढ़ी है। COVID‑19 के बाद रिमोट काम, ऑनलाइन स्कूल और इलेक्ट्रिक कारों ने इस मांग को और तेज़ कर दिया। इस बीच कुछ देशों—जैसे ताइवान, कोरिया और USA—एक ही समय में बहुत सारी चिप बना रहे हैं, जबकि भारत अभी पीछे है। इसलिए कई बड़े कंपनियों ने “चिप संकट” की खबर सुनते ही भारत में फैक्ट्री खोलने की बात की।
वास्तव में चिप बनाने के लिए दो चीज़ जरूरी है: अत्याधुनिक fabs (फ़ैक्ट्री) और कुशल इंजीनियर्स। फे़ब्स बहुत महंगे होते हैं, एक ही फैक्ट्री का खर्च 10‑20 बिलियन डॉलर तक जा सकता है। यही कारण है कि भारत में अभी तक इतने बड़े फे़ब्स नहीं बने। लेकिन सरकार ने रासायनिक पदार्थों की आयात पर छूट, टैक्स रियायत और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की घोषणा कर इस बाधा को कम करने की कोशिश की है।
भारत में चिपमेकर की संभावनाएं
भारत के पास दो बड़े फायदे हैं: बड़ी युवा जनसंख्या और सॉफ्टवेयर टैलेंट का जमावड़ा। अगर ये टैलेंट सीधे सेमीकंडक्टर डिजाइन में लगाएँ, तो डिजाइन साइड में भारत पहले से ही आगे है। कई स्टार्ट‑अप अब AI‑आधारित चिप डिजाइन, एम्बेडेड सॉल्यूशन और IoT डिवाइस में काम कर रहे हैं।
सरकार ने “इंडियन प्रोडक्ट डिजिटल इंडिया” के तहत 2,000 करोड़ रुपये का फंड रखा है, जिससे छोटे‑छोटे चिपमेकर को फंडिंग मिल सके। इसके अलावा, कुछ बड़े कंपनियों—जैसे टेस्ला, एप्पल—भी भारत में सप्लाई चेन बनाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने स्थानीय फाउंड्रीज के साथ साझेदारी की है। इस सहयोग से न सिर्फ फे़ब्स का खर्च कम होगा, बल्कि कौशल विकास भी तेज़ होगा।
एक और बात है कि भारत में सामग्री की सप्लाई अभी भी चुनौतिपूर्ण है। सिलिकॉन वेफ़र, गैस और रसायन पूरी तरह से आयात पर निर्भर हैं। इसका समाधान करने के लिए सरकार ने “डायरेक्ट एम्पोर्ट लाइसेंस” आसान किया है, जिससे फे़ब्स जल्दी शुरू हो सकें।
अगर आप चिपमेकर बनने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहले सर्किट डिजाइन में हँड्स‑ऑन प्रोजेक्ट्स करें। कई ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (जैसे Coursera, Udemy) पर फ्री कोर्स मिलते हैं। फिर, इंटर्नशिप या वैकल्पिक प्रशिक्षण प्रोग्राम (AP) में शामिल हों—ये कंपनियों के साथ जुड़ने का आसान तरीका है।
भविष्य की बात करें तो, 2025‑2030 तक भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 20‑30% CAGR पर बढ़ सकता है। इसका मतलब है नई नौकरियां, नई कंपनियां और नई तकनीकी नवाचार। अगर सही समय पर निवेश और स्किलिंग की जाए, तो भारत भी जल्द ही चिपमेकर के मानचित्र पर प्रमुख स्थान ले सकता है।
तो संक्षेप में, चिपमेकर सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक बड़ा अवसर है। चाहे आप छात्र हों, उद्यमी हों या नीति निर्माता—सबको इस बदलाव में अपनी भूमिका समझनी होगी। छोटे‑छोटे कदम मिलकर बड़ी प्रगति बना सकते हैं, और भारत को विश्व चिप मानचित्र पर ऊँचा स्थान दिला सकते हैं।
Nvidia ने 1999 में अपने प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) के बाद से 591,078% की चौंकाने वाली कुल रिटर्न दर्ज की है, जिससे यह पिछले 25 वर्षों में सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला स्टॉक बन गया है। इसने Microsoft Corp. को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी बनने का मुकाम हासिल किया। Nvidia की इस यात्रा में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर और चुनौतियां रही हैं।
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