PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana: 50 लाख रूफटॉप सोलर सिस्टम के करीब, 20 लाख लग चुके, 30 लाख जल्द
50 लाख की दहलीज पर: छतों पर सौर क्रांति, बिलों में राहत और राज्यों की रफ्तार
एक साल में 8 लाख नए घर, कुल मिलाकर 20 लाख से ज्यादा छतों पर सोलर—और अब लक्ष्य है 50 लाख तक पहुंचने का। यही तस्वीर भारत के रूफटॉप सोलर सेक्टर की है, जहां PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana ने रफ्तार पकड़ ली है। ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी के मुताबिक, अगले चरण में 30 लाख और इंस्टॉलेशन तेजी से जुड़ेंगे।
यह योजना फरवरी 2024 में शुरू हुई थी, लक्ष्य साफ है—2027 तक 1 करोड़ घरों को सोलराइज करना। अब तक करीब 1.4 करोड़ लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है और लगभग 26 लाख एप्लिकेशन जमा हो चुकी हैं। इस एक साल में जितना जोड़ा गया, उतना तो पिछली एक पूरी दशक की रफ्तार के करीब है—यही इस बदलाव की असली रफ्तार दिखाता है।
यह योजना आम उपभोक्ता के बिल पर सीधी राहत देती है। औसतन 2–3 kW का सिस्टम घरों में फिट बैठता है, जो धूप और इस्तेमाल पर निर्भर करते हुए महीने में करीब 240–420 यूनिट तक पैदा कर सकता है। कई शहरों में इतनी उत्पादन क्षमता घरेलू जरूरतों का बड़ा हिस्सा कवर करती है और नेट-मीटरिंग से दिन में बची बिजली ग्रिड में देकर रात में क्रेडिट के रूप में समायोजित हो जाती है। 300 यूनिट तक की राहत का वादा भी इसी तर्क से काम करता है—जहां धूप अच्छी है, वहां यह सीधी जेब में बचत बनती है।
राज्यों की बात करें तो गुजरात ‘चैंपियन’ बना दिख रहा है—यहां रजिस्टर हुए उपभोक्ताओं में से 45% ने सिस्टम लगवा लिया है। महाराष्ट्र में यह दर 20% के आसपास है। ऐसे राज्यों में डिस्कॉम प्रोसेस तेज, नेट-मीटर उपलब्ध और इंस्टॉलेशन एजेंसियां फील्ड पर सक्रिय मिलीं। यही फर्क बनाता है—जहां कागज कम और सर्विस तेज, वहां छत पर सोलर जल्दी चढ़ता है।
एक बड़ा कदम उन परिवारों के लिए है जिनके पास अपनी छत नहीं है—किराये के घरों में रहने वाले, अपार्टमेंट के फ्लैट-ओनर या घनी बस्तियों के निवासी। केंद्र ने ‘यूटिलिटी-लीड मॉडल’ को मंजूरी दी है, जिसमें डिस्कॉम या राज्य एजेंसी सोलर एसेट खड़ा करती है और उपभोक्ता को बिल में क्रेडिट मिलता है। आंध्र प्रदेश ने इसके लिए विस्तृत अमल-योजना दिखाकर उत्साह बढ़ाया है, अन्य कई राज्यों ने भी मांग रखी है। यह मॉडल सामुदायिक या साझा सोलर की राह खोलता है—जगह एक जगह, लाभ कई घरों तक।
बड़ी तस्वीर में भारत की सौर क्षमता जुलाई 2025 तक 119.02 GW पहुंच चुकी है। इसमें से 19.88 GW रूफटॉप से आती है, जबकि 90.99 GW ग्राउंड-माउंटेड प्लांट्स से। एक दशक में 4,000% की छलांग—यानी शुरुआती आधार से चालीस गुना वृद्धि। सरकार का दावा है कि गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% बिजली क्षमता का लक्ष्य 2030 से पांच साल पहले हासिल कर लिया गया है। रूफटॉप सोलर इस बदलाव का सबसे ‘लोकतांत्रिक’ हिस्सा है—ऊर्जा उत्पादन का कंट्रोल सीधे घरों के हाथ में।
इंफ्रास्ट्रक्चर के बिना ऐसी दौड़ मुमकिन नहीं। घरेलू मैन्युफैक्चरिंग यही बैकबोन बनी है—मार्च 2024 में जहां सोलर मॉड्यूल की क्षमता 38 GW थी, मार्च 2025 में यह 74 GW तक जा पहुंची। सोलर सेल मैन्युफैक्चरिंग 9 GW से 25 GW हो गई। परिणाम? इंपोर्ट पर निर्भरता घटना, कीमतों में स्थिरता और सप्लाई चेन पर भरोसा बढ़ना।
योजना के वित्तीय ढांचे में केंद्र की सब्सिडी सबसे बड़ा प्रोत्साहन है। इसके साथ ही सस्ती दरों पर ऋण की सुविधा, डिस्कॉम-नेतृत्व वाले इंस्टॉलेशन और शहर-वार एंपैनल्ड वेंडर्स—ये सारी चीजें मिलकर एंट्री बैरियर कम करती हैं। ज्यादातर राज्यों में प्रक्रिया यही है—ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन, डिस्कॉम से तकनीकी स्वीकृति, एंपैनल्ड वेंडर का चयन, इंस्टॉलेशन, निरीक्षण, नेट-मीटर फिटिंग और फिर सब्सिडी का डायरेक्ट ट्रांसफर। जहां ये कदम टाइम-बाउंड होते हैं, वहां संख्याएं तेजी से भागती हैं।
अब चुनौती वाले मोर्चे। पहली, 2027 तक 1 करोड़ घरों तक पहुंचने के लिए हर महीने लगभग 4 लाख इंस्टॉलेशन चाहिए—यानि रोज करीब 13–14 हजार। इसके लिए बड़े पैमाने पर तकनीशियन, छत पर काम करने वाली सुरक्षित टीमें, और इन्वर्टर/मीटर सप्लाई की गारंटी चाहिए। दूसरी, नेट-मीटरिंग की मंजूरी कई शहरों में धीमी रहती है—अगर यहां बोतलनेक बना, तो इंस्टॉलेशन हो कर भी बिल में फायदा देर से दिखेगा। तीसरी, गुणवत्ता—घटिया केबल, गलत साइजिंग या छाया-अनुकूलन में चूक लंबे समय का नुकसान करती है।
इन्हीं जोखिमों को ध्यान में रखकर राज्यों ने कुछ सुधार शुरू किए हैं—स्टैंडर्ड तकनीकी स्पेसिफिकेशन, इंस्टॉलेशन चेकलिस्ट, सेफ्टी ऑडिट, और ‘सेवा-स्तर समझौते’ (SLA) ताकि नेट-मीटरिंग और निरीक्षण तय समय में हो। यूटिलिटी-लीड मॉडल भी इसी लिए अहम है—डिस्कॉम खुद परियोजना का मालिक बनता है, तो बाद की सर्विस और मीटरिंग में तालमेल आसान रहता है।
उपभोक्ता के नजरिये से सवाल सरल हैं—मेरी छत पर कितनी जगह है, धूप कितनी देर मिलती है, और मेरी औसत खपत क्या है? मोटे तौर पर 100 वर्गफुट जगह में 1 kW सिस्टम फिट हो जाता है। 2–3 kW सिस्टम छोटे-मझोले घरों के लिए ठीक है, 5 kW उन परिवारों के लिए जो एसी, गीज़र और किचन के भारी लोड साथ चलाते हैं। एक बेहतर टिप—दिन में ज्यादा बिजली मांगने वाले उपकरण चलाइए, ताकि डायरेक्ट सोलर उपयोग बढ़े और नेट-मीटर पर निर्भरता कम पड़े।
मेंटेनेंस भी भारी नहीं—पैनल की सफाई, केबल-टर्मिनल का वार्षिक निरीक्षण और इन्वर्टर के अलर्ट पर ध्यान। मॉड्यूल की परफॉर्मेंस वारंटी आमतौर पर 25 साल के आसपास होती है, जबकि इन्वर्टर 5–10 साल में रिप्लेसमेंट की जरूरत दिखा सकता है। अच्छी केबलिंग, उचित अर्थिंग और ओवर-वोल्टेज प्रोटेक्शन—ये खर्च छोटे हैं लेकिन सुरक्षा बड़ी।
शहरों में जहां छत कम और फ्लैट ज्यादा हैं, वहां अपार्टमेंट-सोसायटी मॉडल या यूटिलिटी-लीड क्रेडिट सबसे व्यवहारिक दिखते हैं। कई जगह RWA स्तर पर सामुदायिक सोलर की चर्चा बढ़ी है—छत सामूहिक, बिल में क्रेडिट अलग-अलग फ्लैट को। यह मॉडल स्केल पर सस्ता भी पड़ता है और सर्विस मैनेजमेंट आसान करता है।
ग्रिड के लिहाज से रूफटॉप सोलर दिन के समय स्थानीय ट्रांसफॉर्मरों पर लोड घटाता है, पीक-शेविंग में मदद करता है। आगे चलकर स्मार्ट मीटर और समय-अनुसार टैरिफ (Time-of-Day) जैसे कदम इस लाभ को और बढ़ाएंगे। बैटरी स्टोरेज की कीमतें भी गिर रही हैं—हालांकि आज यह हर घर के लिए जरूरी नहीं, लेकिन संवेदनशील लोड (राउटर, मेडिकल डिवाइस, होम-ऑफिस) के लिए छोटे स्टोरेज पैक समझदारी हो सकते हैं।
इस पूरी दौड़ में निवेश भी कम नहीं—करीब ₹6.57 लाख करोड़ की योजना-व्यापी लागत बताई गई है, जो 2030 तक 500 GW नवीकरणीय क्षमता के राष्ट्रीय लक्ष्य से जुड़ी है। मकसद सिर्फ हरित ऊर्जा नहीं, ऊर्जा-आत्मनिर्भरता और घरेलू स्तर पर बचत है। जैसे-जैसे मैन्युफैक्चरिंग-इंस्टॉलेशन-फाइनेंस की कड़ी मजबूत होती जाएगी, घरों की छतें देश की बिजली व्यवस्था का भरोसेमंद हिस्सा बनती जाएंगी।
आगे का रोडमैप: तेज मंजूरियां, स्किल्ड वर्कफोर्स और भरोसेमंद सर्विस
रफ्तार बनाए रखने के लिए तीन चीजें निर्णायक होंगी—पहली, डिस्कॉम की मंजूरियां समय पर मिलें; दूसरी, एंपैनल्ड वेंडर्स के जरिए गुणवत्ता और वारंटी का पालन; तीसरी, फील्ड पर स्किल्ड इंस्टॉलर। 4 लाख इंस्टॉलेशन प्रति माह का मतलब है हजारों नई टीमों का मैदान में उतरना। प्रशिक्षण, सेफ्टी प्रोटोकॉल और स्टैंडर्ड इंस्पेक्शन—ये सब अब ‘ऑप्शनल’ नहीं, अनिवार्य हैं।
नीति-पक्ष पर यूटिलिटी-लीड मॉडल तेजी से अपनाया गया, तो किरायेदार और अपार्टमेंट रहने वालों को भी बराबरी का फायदा मिलेगा। उद्योग-पक्ष पर मैन्युफैक्चरिंग की बढ़ी क्षमता कीमतों को स्थिर रखेगी और सप्लाई में रुकावट कम करेगी। उपभोक्ता-पक्ष पर आसान लोन और स्पष्ट सब्सिडी-प्रक्रिया भरोसा बढ़ाएगी। यही तीनों पहिए साथ चले, तो 50 लाख तो बस पड़ाव है—1 करोड़ घरों का लक्ष्य भी समय पर दिखेगा।
9 टिप्पणि
Aniket Jadhav
सितंबर 17 2025yaar yeh solar system lagwane ka soch raha tha, ab toh lagana hi padega! 2-3 kW ka kitna lagta hai bhai? maine toh socha tha yeh sab sirf rich logon ke liye hai, lekin ab lagta hai hum bhi kar sakte hain.
Renu Madasseri
सितंबर 18 2025It's amazing how this scheme is actually making a difference in real life. In my aunt’s village in Kerala, they installed a 2 kW system last year and now their electricity bill is just ₹150/month. The net metering worked perfectly, and they even got a subsidy within 45 days. People are starting to believe it now - not just because of the government, but because they’re seeing the results.
rudraksh vashist
सितंबर 18 2025maine apne ghar pe 3 kW lagwaya tha last month, aur ab toh maine apne neighbour ko bhi convince kar diya! sab kehte the ki yeh sab fake hai, lekin jab unhone apni bill dekhi toh chup ho gaye. ab toh hum 5 log milke ek community solar project ka idea bhi soch rahe hain - ek hi roof, 5 ghar ke liye credits!
Sahaj Meet
सितंबर 19 2025dekho yeh solar yojana sirf bill kam karne ke liye nahi hai - yeh hamare desh ki energy independence ki pehli saans hai. humne ab tak sirf 19 GW rooftop solar install kiya hai, lekin agar yeh 1 crore tak pahunch jaaye toh hum ground-mounted plants ki zaroorat kam kar denge. aur haan, yeh sab humare ghar ke bachche bhi dekh rahe hain - ab unki soch bhi change ho rahi hai.
Guru Singh
सितंबर 21 2025Ek important point jo log bhool jaate hain - inverter ki lifespan sirf 5-10 saal hoti hai. Panel toh 25 saal kaam karte hain, lekin inverter replace karna padta hai. Isliye warranty aur service provider ka dhyan rakhna zaroori hai. Kisi bhi vendor ko select karte waqt, unke past projects aur after-sales support check karein. Bas subsidy ke liye nahi, long-term reliability ke liye socho.
Kajal Mathur
सितंबर 22 2025It is rather disappointing to observe the casual tone and lack of technical precision in public discourse surrounding such a critical infrastructure initiative. The article, while informative, is marred by colloquialisms that undermine the scientific rigor required for sustainable energy planning. One cannot expect systemic change through viral social media narratives - policy must be anchored in engineering standards, not anecdotal testimonials from unverified installers.
Archana Dhyani
सितंबर 23 2025Oh my god, I just read this and I’m crying. I mean, really? After all these years of power cuts, of paying ₹8000 bills in summer, of watching my mother worry about the AC, now… now someone finally did something that actually helps people? I’m not even joking - I called my landlord yesterday and told him we’re installing solar on the roof. He laughed, but I showed him the subsidy calculator and now he’s thinking about it. I just hope this doesn’t get ruined by corruption or delays. Please don’t let this be another broken promise. I need this. We all need this.
Anoop Joseph
सितंबर 24 2025Yaar, agar koi flat mein rehta hai aur uske paas apni chhat nahi hai, toh kya kare? Yeh utility-led model kaafi accha hai, lekin koi bata sakta hai kahan se apply kare? Main Delhi mein rehta hoon, aur meri society mein koi bhi nahi soch raha.
Madhav Garg
सितंबर 25 2025Utility-led models are the future - not just for renters, but for cities where rooftop space is scarce. In Mumbai and Bangalore, apartment societies are already piloting shared solar systems with individual credits. The real win? Lower maintenance burden, standardized quality, and grid stability. If the state utilities take ownership, then accountability follows. This isn’t just about saving money - it’s about building a distributed energy ecosystem that’s resilient, fair, and scalable.