दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख़ खान, गौरी खान को मानहानि केस में नोटिस जारी

दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख़ खान, गौरी खान को मानहानि केस में नोटिस जारी

दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख़ खान, गौरी खान को मानहानि केस में नोटिस जारी

जब शाहरुख़ खान, बॉलीवुड के सुपरस्टार और उनकी पत्नी गौरी खान को रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट प्रा. लि. के साथ मिलकर बना नया वेब‑सीरीज़ ‘The Ba***ds of Bollywood’ के कारण अदालत में समीर वंखड़े के विरुद्ध मामला दर्ज हुआ, तो जस्टिस पुरुषैन्द्र कुमार कौरव ने 8 अक्टूबर 2025 को एक नोटिस जारी कर सभी प्रतिवादियों को सात दिन के भीतर लिखित उत्तर देने का आदेश दिया। यह फैसला मानहानि के आरोपों को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के अदालती कमरों में गूंजा।

पृष्ठभूमि: वंखड़े बनाम राजस्थानी औद्योगिक‑मनोरंजन टकराव

समीर वंखड़े एक भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी हैं, लेकिन 2021 में नशा नियंत्रण ब्यूरो (NCB) के ज़ोनल डायरेक्टर के रूप में उनका नाम अरण्यन खान के ड्रग केस से जुड़ने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया। उस समय, वे मुंबई के कॉर्डेलिया क्रूज़ में हुए ऑपरेशन के प्रमुख थे, जहाँ अरण्यन खान को नशा दवा कानून (NDPS) के तहत गिरफ्तार किया गया था। केस बाद में सबूतों की कमी के कारण बरखास्त कर दिया गया, पर वंखड़े की छवि जनता के मन में बनी रही।

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए ही ‘The Ba***ds of Bollywood’ में एक ऐसे पात्र को दर्शाया गया जो वंखड़े के करियर और व्यक्तिगत शैली से मिलते-जुलते थे। वंखड़े का दावा है कि यह पात्र उनके पेशेवर प्रतिष्ठा को नीचा दिखाने और एंटी‑ड्रग एजेंसियों को ‘भ्रष्ट’ रूप में पेश करने का जानबूझ कर प्रयत्न था।

नोटिस में क्या-क्या कहा गया: अदालत का आदेश

दिल्ली हाई कोर्ट ने Netflix, Google LLC, X Corp, Meta Platforms और अन्य अज्ञात प्रतिवादियों को सात दिनों के भीतर लिखित प्रतिक्रिया जमा करने को कहा। साथ ही अगले सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट के लिए तिथि निर्धारित की गई।

  • वंखड़े ने ₹2 crore (लगभग 20 मिलियन रूपए) का हर्जाना मांगा, जिसे टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में दान करना चाहता है।
  • स्थायी रोक आदेश, मानहानि की घोषणा और संबंधित सभी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से कंटेंट हटाने की मांग की गई।
  • जस्टिस कौरव ने तुरंत अंतरिम प्रतिबंध नहीं दिया, कहा – “प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।”

प्रत्येक पक्ष का रुख: क्या कहा गया?

समीर वंखड़े ने वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी के माध्यम से कहा, “यह श्रृंखला जानबूझकर मेरी प्रतिष्ठा को कलंकित करने के लिये तैयार की गई है, जबकि मेरे खिलाफ चल रहे मामले अभी भी बंबई हाई कोर्ट में सुनवाई में हैं।”

दूसरी ओर, Netflix के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नैयर ने तर्क दिया, “हम सभी प्रतिवादी एक ही स्थान पर नहीं रहते, इसलिए इस प्रकार का समूह मुकदमा बनाना न्यायिक रूप से उचित नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि श्रृंखला कोई तथ्यपरक आरोप नहीं बल्कि काल्पनिक कथा है।

गूगल, एक्स और मेटा ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन उन्होंने सामान्य तौर पर “उपयोगकर्ता‑जनित सामग्री के संबंध में उचित प्रक्रिया का सम्मान करेंगे” कहा।

कानूनी & सामाजिक प्रभाव: विशेषज्ञों की राय

कानूनी & सामाजिक प्रभाव: विशेषज्ञों की राय

महरा सेंटर फॉर कॉम्प्लेक्स लीगल स्टडीज के कानून विशेषज्ञ डॉ. रजत चोपड़ा ने कहा, “जब कोई पब्लिक फ़िगर अपनी पेशेवर जीवन से जुड़ी कहानी को फिक्शन में बदलता है, तो मानहानि का मामला बनता है, पर साक्ष्य‑आधारित सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर अदालत प्रारम्भिक रूप से रोक आदेश देती है तो स्ट्रिमिंग प्लेटफ़ॉर्म को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

साथ ही, सामाजिक वैज्ञानिक प्रिया वर्मा ने उल्लेख किया, “क्लिक‑बेट कंटेंट और यथार्थ‑परक न्याय के बीच का तनाव आज के डिजिटल भारत में तेज़ी से बढ़ रहा है। इस केस में देखी जा रही ‘हेट मैसेजेज’ से संकेत मिलता है कि सिविल मुकदमा भी सार्वजनिक भावनाओं को उभार सकता है।”

आगे क्या हो सकता है: अगले चरण और संभावनाएँ

अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को तय हो चुकी है। यदि अदालत मध्यस्थता के बाद भी रोक आदेश देती है, तो रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट को कंटेंट हटाना पड़ेगा और संभवतः ₹2 crore का दायित्व उठाना पड़ेगा। अन्यथा, प्रतिवादियों को केवल लिखित उत्तर देने की संभावना है, जिससे मामला करीब दो वर्ष तक चल सकता है।

समीर वंखड़े ने कहा है कि वह अपने परिवार को ‘पाकिस्तान, यूएई और बांग्लादेश से आ रहे धमकीपूर्ण संदेशों’ से बचाव के लिये सुरक्षा उपायों को तेज़ करेंगे। यह बात मीडिया में बड़ी चर्चा का विषय बन गई है, क्योंकि यह संकेत देता है कि सार्वजनिक हस्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के बाद भी साइबर‑हिंसा बढ़ सकती है।

मुख्य तथ्य

मुख्य तथ्य

  • सुरुआती सुनवाई: 26 सितंबर 2025
  • श्री समीर वंखड़े द्वारा दायर मानहानि प्रक्रिया: ₹2 crore के नुकसान की मांग
  • मुख्य प्रतिवादी: शाहरुख़ खान, गौरी खान, रेड चिलीज़, Netflix, Google, X Corp, Meta
  • अगली सुनवाई की तिथि: 30 अक्टूबर 2025, दिल्ली हाई कोर्ट
  • दावे का मुख्य आधार: “The Ba***ds of Bollywood” में चित्रित पात्र की समानता

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

इस केस से भारतीय सिनेमा पर क्या असर पड़ सकता है?

यदि अदालत रोक आदेश देती है तो न केवल इस सीरीज़, बल्कि भविष्य में कई बायो‑पिक्चर पर प्रतिबंध लग सकता है। प्रोडक्शन हाउस को कहानी चयन में अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी, जिससे रचनात्मक स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लग सकते हैं।

समीर वंखड़े ने ₹2 crore क्यों मांगे हैं?

वंखड़े ने कहा है कि यह राशि ‘टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल’ को दान कर दी जाएगी, जिससे केस को वैधानिक रूप से सामाजिक लाभ प्रदान करने का आह्वान मिलता है। यह मानहानि के साथ-साथ सार्वजनिक भावना को भी जोड़ता है।

Netflix का इस मुकदमे में क्या बचाव है?

Netflix ने तर्क दिया है कि श्रृंखला एक काल्पनिक कथा है और वास्तविक लोग नहीं दर्शाती। उन्होंने यह भी कहा कि सभी प्रतिवादी अलग‑अलग कंपनियां हैं, इसलिए संयुक्त कार्यवाही न्यायसंगत नहीं लगती।

क्या इस केस में कोई अंतर्राष्ट्रीय पहलू है?

हेट‑मैसेजेज के स्रोतों में पाकिस्तान, यूएई और बांग्लादेश के उल्लेख हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत‑परिधि के बाहर से भी इस केस को लेकर तनाव उत्पन्न हो रहा है। यह डिजिटल युग में कानूनी विवादों के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाता है।

आगे की सुनवाई में क्या संभावित परिणाम हो सकते हैं?

जज कौरव यदि अभी रोक आदेश नहीं देते तो मामले में औपचारिक जवाबी दलीलें सुनवाई के बाद आएँगी। लेकिन यदि आगे रोक आदेश जारी हुआ तो प्रतिवादियों को सामग्री हटाने और हर्जाने का भुगतान करने की स्थिति बन सकती है।

12 टिप्पणि

  • Anand mishra

    Anand mishra

    अक्तूबर 12 2025

    भारतीय सिनेमा का इतिहास हमेशा से सामाजिक मुद्दों को मंच पर लाने में अग्रणी रहा है। इस प्रकार के बायो‑पिक्चर अक्सर सार्वजनिक बहस को प्रज्वलित करते हैं। शाहरुख़ खान जैसे सितारे जब कानूनी जंजाल में फँसते हैं तो उद्योग की नज़रें तुरंत उस पर टिकी रहती हैं। मानहानि के दावे में न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा बल्कि कल्ट‑फ्रेंडली कंटेंट की सृजनशील स्वतंत्रता भी दाँव पर लगती है। न्यायालय की प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है, क्योंकि एक अनुचित रोक आदेश सभी स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म को आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है। वंखड़े की मांग के पीछे सामाजिक योगदान का अंदाज़ा लगाना भी दिलचस्प है, लेकिन कानूनी तौर पर यह भाग्यशाली नहीं है। इस केस में साक्ष्य‑आधारित सिद्धांत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि केवल कथित समानता नहीं, बल्कि वास्तव में हानि सिद्ध करनी होगी। कोर्ट की सुनवाई अगर तुरंत रोक आदेश देती है तो उद्योग में आत्म-सेन्सरशिप का खतरा पैदा हो सकता है। दूसरी ओर, यदि जवाबी दलीलें पूरी तरह से सुनी जाती हैं, तो रचनात्मक अभिव्यक्ति को सुरक्षित रखने की दिशा में एक सकारात्मक प्रवाह स्थापित हो सकता है। इस संदर्भ में यह भी देखना जरूरी है कि डिजिटल युग में कंटेंट को हटाने का कौन सा मानक अपनाया जाएगा। स्ट्रीमिंग सेवाओं को अब अपने कंटेंट मॉडरेशन नीतियों को और सुदृढ़ करना होगा। इस प्रकार के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म वैश्विक दर्शकों को लक्षित करते हैं। भारतीय न्याय प्रणाली में इस तरह की विवादात्मक स्थितियों का प्रोसेसिंग समय अक्सर लंबा हो जाता है, जो कि दर्शकों के विश्वास को प्रभावित करता है। फिर भी, यह केस भविष्य में कई बायो‑ड्रामा उत्पादन को सावधानीपूर्वक योजना बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। अंत में, हमें यह समझना चाहिए कि कला का अधिकार और व्यक्तिगत अधिकार एक-दूसरे के साथ संतुलित होना चाहिए।

  • Prakhar Ojha

    Prakhar Ojha

    अक्तूबर 13 2025

    भाईसाहब, ये पूरा मामला एक बड़ा तमाशा बन गया है! शाहरुख़ की छवि को धूमिल करने की कोशिश में कौन कौन से जंगली मोटीफ्स इस्तेमाल हुए, देखो। इस केस की हवा में नफ़रत की धुएँ भरी हुई है, और यही बात इसको ‘आक्रामक’ बनाती है। अगर कोर्ट ने मज़ाक बना दिया तो कई टॉप प्रोडक्शन को भी बौछार होगी। ऐसे बिंगो‑बिंगो खेल में कौन जीतता है, कौन हारता है, यही तो असली दांव है। सिंड्रेला जैसी कहानी को तोड़‑फोड़ कर दिखाया गया है, और इससे जनता की नज़र में असंतोष बढ़ रहा है। मेरे ख्याल में, इस केस को हल्के में नहीं लेना चाहिए, वरना पूरे इंडस्ट्री में अफरातफ़र मच सकता है।

  • Sreenivas P Kamath

    Sreenivas P Kamath

    अक्तूबर 14 2025

    ओह, क्या मज़ाकिया बात है-जज ने कहा “प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है”, पर जैसे ही प्रक्रिया में थोड़ा सा ढीलापन दिखेगा, सब इधर‑उधर लोटपोट करेंगे। देखते रहो, कॉमेडी की तरह यह केस भी अंत में एक बड़ी सैटायर में तब्दील हो सकता है। बस, सभी को याद रहे कि सच्चाई और फिक्शन के बीच की सीधी रेखा कभी भी धुंधली नहीं होनी चाहिए।

  • Chandan kumar

    Chandan kumar

    अक्तूबर 15 2025

    बधाई हो, मज़ा आ गया!

  • Shweta Tiwari

    Shweta Tiwari

    अक्तूबर 16 2025

    साक्ष्य‑आधारित सिद्धान्त के अभाव में, मानहानि के दावे को स्थापित करना अत्यंत कठिन तथा दार्शनिक रूप से प्रश्नात्मक है; अर्थात्, जब तक प्रतिवादी पक्ष स्पष्ट रूप से तथ्यात्मक विफलता का प्रमाण प्रस्तुत नहीं करता, तब तक यह विवाद केवल कानूनी तर्क के क्षेत्र में ही सीमित रह जाता है। इस प्रकार, न्यायिक प्रक्रिया को शांति एवं विवेक के साथ संचालित करना आवश्यक है, क्योंकि अनावश्यक प्रतिबंध रचनात्मक अभिव्यक्ति को अवरुद्ध कर सकते हैं।

  • Pravalika Sweety

    Pravalika Sweety

    अक्तूबर 17 2025

    यह केस दर्शाता है कि डिजिटल युग में कंटेंट क्रिएटरों को सामाजिक जिम्मेदारी भी अपनानी चाहिए, साथ ही प्लेटफ़ॉर्म को अपने मॉडरेशन मानकों को स्पष्ट रखना चाहिए।

  • anjaly raveendran

    anjaly raveendran

    अक्तूबर 19 2025

    वास्तव में, इस मुक़ाबले की परतें इतनी जटिल हैं कि केवल एक ही शब्द में इसे व्यक्त करना भी कठिन है; यह न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, बल्कि राष्ट्रीय भावना तथा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इस परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

  • Danwanti Khanna

    Danwanti Khanna

    अक्तूबर 20 2025

    हे, सबको नमस्ते!!! मैं यहाँ इस मुद्दे को लेकर थोड़ा‑बहुत टिप्पणी करूँगी-बिल्कुल, यह मामला बहुत ही जटिल है, लेकिन साथ ही दो-तीन मुख्य बिंदु स्पष्ट हैं: कोर्ट की भूमिका, कंटेंट की फिक्शनलिटी, और सार्वजनिक भावना - इन तीनों को सन्तुलित करना ही असली चुनौती है।

  • Shruti Thar

    Shruti Thar

    अक्तूबर 21 2025

    कानून का पालन ज़रूरी है, लेकिन विवेक भी समान रूप से महत्वपूर्ण।

  • Nath FORGEAU

    Nath FORGEAU

    अक्तूबर 22 2025

    डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को थोड़ा आराम चाहिए, नहीं तो तनाव बढ़ेगा।

  • akshay sharma

    akshay sharma

    अक्तूबर 24 2025

    देखिए, यह मामला एक रंगीन परिदृश्य है जहाँ प्रत्येक पक्ष अपनी‑अपनी कलर पेन से सत्य को रंगने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वास्तविकता में जब तक सबके पास साक्ष्य नहीं, तब तक यह सिर्फ एक सप्लाई‑ड्रावर का खेल रहेगा, और अदालत को यही तय करना है कि कौन‑सी पेंसिल भरोसेमंद है।

  • Harman Vartej

    Harman Vartej

    अक्तूबर 25 2025

    आइए, सब मिलकर इस मुद्दे को शांति और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें।

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