मुंबई लोकल ट्रेन हादसा: ठाणे के पास भीड़भाड़ में 4 यात्रियों की मौत, रेलवे ने घोषित किए नए सुरक्षा उपाय
मुंबई लोकल का भयानक चेहरा: हर कदम पर खतरा
सोमवार सुबह ठाणे जिले के मुंब्रा स्टेशन के पास वो मंजर जिसने मुंबई वालों को झकझोर कर रख दिया। दो लोकल ट्रेनें आमने-सामने से गुजरती हैं और सेकंड के भीतर चार जिंदगियां छिन जाती हैं। भीड़ ऐसी थी कि यात्री डिब्बे के अंदर समा ही नहीं रहे थे, पैर फुटबोर्ड पर, बैग दरवाजे से बाहर लटक रहे थे। एक तरफ कासरा की ओर जा रही लोकल थी, दूसरी तरफ सीएसएमटी जाने वाली लोकल। तेज मोड़ ने स्पीड और बैलेंस को खेल बना दिया। अचानक दोनों ट्रेनों के फुटबोर्ड पर लटके यात्री आमने-सामने आ गए, बैग टकराए और लोग सीधे रेलवे पटरी पर जा गिरे। खिड़कियों से देखते ही बाकी यात्रियों की सांसें थम गईं।
इस हादसे में 23 साल के केतन सरोज, 27 के राहुल गुप्ता, 44 के मयूर शाह और 34 साल के रेलवे कांस्टेबल विकी मुख्याद की मौत हो गई। घायलों की फेहरिस्त और भी लंबी है — शिवा गावली, आदेश भोइर, रेहान शेख, अनिल मोर, तुषार भगत, मनीष सरोज, मच्छिंद्र गोतरने, स्नेहा धोंडे और प्रियंका भाटिया। अस्पतालों की इमरजेंसी की घंटी तभी से बज रही है।
रेलवे की राहत और सुरक्षा योजनाएं: सवाल अब भी कायम
मुंबई की लोकल ट्रेन जीवनरेखा है, हर दिन करीब 75 लाख लोग इसी पर सवार होते हैं। मगर इसके साथ ही खतरा भी रोजाना सिर उठाता रहता है। कितनी बार देखा और सुना है कि भीड़ की वजह से यात्री दरवाजे पर लटकते हैं, चोटिल होते हैं, कई बार जान भी चली जाती है। मगर सोमवार की यह घटना सिस्टम की असल कमजोरी उजागर कर गई।
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, हादसे के बाद तुरंत जांच के आदेश तो दे दिए गए, लेकिन असली बदलाव की जरूरत महसूस हुई है। अब वादा किया गया है कि नई और मौजूदा ट्रेनों में ऑटोमैटिक दरवाजे लगेंगे। इसके अलावा, लौवर डिजाइन के दरवाजे और वेंटिलेशन सिस्टम भी लाने की बात हो रही है ताकि यात्री बाहर लटकने के लिए मजबूर न हों। पूछने पर अधिकारी मानते हैं कि जितनी भी तकनीक ले आएं, जब तक प्लेटफॉर्म और ट्रेनें यात्रियों के अनुसार अपग्रेड नहीं होंगी, खतरा टलेगा नहीं।
इस हादसे ने साफ कर दिया है कि मुट्ठी भर उपायों से मुंबई लोकल की भीड़ और असुरक्षा की समस्या हल होने वाली नहीं है। अब रेलवे की घोषणा पर नज़रें टिकी हैं, क्योंकि लोगों की जान से बड़ा एजेंडा कुछ और हो नहीं सकता।