किसान आंदोलन – क्यों हिल रहा है भारत का कृषि क्षेत्र?
आपने टीवी, सोशल मीडिया या दोस्तों से अक्सर किसान आंदोलन की खबरें सुनी होंगी। लेकिन असल में किसान क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी मुख्य मांगें क्या हैं, और आज उनका मोर्चा कहाँ है – ये सब समझना अक्सर मुश्किल लगता है। इस लेख में हम सीधे-सीधे, बिना जटिल शब्दों के, किसान आंदोलन के मूल कारण, प्रमुख मांगें और वर्तमान स्थिति पर चर्चा करेंगे।
किसान आंदोलन के मुख्य कारण क्या हैं?
सबसे पहला कारण है 2020 में लागू हुए तीन कृषि कानून। इन कानूनों को सरकार ने "स्मार्ट" कहा, लेकिन किसानों ने इसे "सुधार नहीं, बल्कि मदद नहीं" समझा। उन्होंने कहा कि नई नीतियों से उनके दाम कम हो जाएंगे और बड़े कंपनियों को उनका खेत‑बाजार आसान हो जाएगा।
दूसरा कारण है मौसमी समस्याएँ – देर‑से‑बारिश, फसल पर कीट, और कीमतों का उतार‑चढ़ाव। जब फसल सही कीमत नहीं मिलती, तो किसान घाटे में चला जाता है। इन दो बड़े कारणों ने मिलकर एक बड़े विरोध का रूप ले लिया।
किसानों की प्रमुख मांगें क्या हैं?
पहली मांग है तीन कृषि कानूनों को वापस लेना। किसान चाहते हैं कि पुराने नियमों पर वापस लौटें, जहाँ न्यूनतम समर्थन कीमत (MSP) के साथ अधिक स्थिरता थी।
दूसरी मांग है "संपूर्ण कृषि वैधता" – यानी सभी फसलों के लिए MSP सुनिश्चित करना। अब तक केवल कुछ फ़सलें ही MSP के दायरे में हैं, जिससे कई छोटे किसान असहाय महसूस करते हैं।
तीसरी मांग है "किसान‑केंद्रित नीतियों" का निर्माण, जिसमें फसल बीमा, सस्ते बीज, और उचित बाजार संरचना शामिल हों। किसान चाहते हैं कि सरकार उनके लिये एक सुरक्षित बफर बनें, न कि व्यापारियों का मददगार।
इन मांगों के अलावा, कई किसान स्थानीय स्तर पर पानी, सड़कों, और कृषि उपकरणों की बेहतर सुविधाएँ चाहते हैं। उनका कहना है कि बुनियादी सुविधाओं की कमी भी उत्पादन पर असर डालती है।
आज तक इस आंदोलन में कई चरण देखे गए – पिचकारी से लेकर धरना, सड़कों पर बड़ी-भारी मार्च, और दिल्ली के सबसे बड़े राजमार्गों पर रोक। अधिकांश किसान ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की कोशिश की, लेकिन कभी‑कभी टकराव भी हुए। फिर भी, उनका मूल मकसद हमेशा संवाद और समाधान रहा है, न कि हिंसा।
सरकार ने कई बार बातें कीं – "हम किसान भाईयों की बात सुनेंगे" और "समीक्षा समिति बनाई जाएगी"। लेकिन कई किसानों का मानना है कि वादे सिर्फ शब्द हैं, जब तक वास्तविक कार्य नहीं दिखता। इसलिए आंदोलन अभी भी जारी है, और कई राज्यों में नए प्रोटेस्ट भी देखे जा रहे हैं।
अगर आप इस आंदोलन को समझना चाहते हैं, तो सबसे आसान तरीका है किसानों के सीधे बयानों को पढ़ना, उनके ग्रासरूट्स इकॉनमी की रिपोर्ट्स देखना और स्थानीय खबरों को फॉलो करना। आम तौर पर, आंदोलन के केंद्र में हमेशा "जवाबदेही" और "फ़ेयर प्राइस" की मांग रहती है।
अंत में, किसान आंदोलन सिर्फ एक स्थानीय मुद्दा नहीं है, यह पूरे देश की कृषि नीति का बड़ा परीक्षा‑पात्र है। अगर सरकार और किसान मिलकर समाधान निकाल पाते हैं, तो भारतीय कृषि को नई उन्नति मिल सकती है। आप भी इस मुद्दे पर चर्चा करके, विचार साझा करके, इस परिवर्तन में भाग ले सकते हैं।
पंजाब में किसान आंदोलन जारी है, जिसका नेतृत्व जगजीत सिंह दाल्लेवाल कर रहे हैं। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी है। दाल्लेवाल 26 नवंबर से भूख हड़ताल पर हैं, जिसे 35 दिन पूरे हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उचित चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है। आंदोलन स्थल पर किसानों का जमावड़ा जारी है।
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