अंधविश्वास: माने या नहीं?

हममें से बहुतों ने बचपन में कुछ न कुछ अंधविश्वास सुनें हैं – जैसे सुबह की पहली साँस में कपड़े उल्टा पहनना, काली बिल्ली को देखना बुरा भाग्य लाता है, या शादी में सोने के बर्तन नहीं रखे जाएँ। ये बातें अक्सर हमारे दिमाग में छोटी‑छोटी आवाज़ें बन कर रहती हैं, लेकिन क्या ये सच है?

अंधविश्वास क्यों फैलते हैं?

अंधविश्वास की जड़ें अक्सर अनजाने डर या अज्ञात को समझने की कोशिश में होती हैं। जब कोई घटना अचानक या inexplicable होती है, तो लोग उसे किसी रहस्यमय कारण से जोड़ देते हैं। यही कारण है कि बारीश के बाद काली बिल्ली का दिखना ‘बुरा’ माना जाता है – क्योंकि लोग उसे बुरा संकेत मानते हैं, जबकि असल में यह सिर्फ एक बिल्ली है।

परिवार और समाज भी अंधविश्वास को कायम रखने में मदद करते हैं। दादी‑दादू से सुनाई गई कहानियाँ, टीवी पर दिखाए गए सोप‑ऑपेरा, या सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट – ये सब एक साथ मिलकर विश्वास को सुदृढ़ कर देते हैं। अक्सर हम बिना सोचे‑समझे इन पर भरोसा कर लेते हैं, क्योंकि यह हमारी परम्परा का हिस्सा बन जाता है।

विज्ञान कैसे बताता है अंधविश्वास को?

विज्ञान कहता है कि हर घटना का कारण‑परिणाम संबंध होता है। अगर किसी को लगता है कि “काली बिल्ली देखे बिना यात्रा नहीं करनी चाहिए”, तो विज्ञान इसे सिर्फ एक coincidence मानता है। कई बार लोग उन coincidences को ही याद रखते हैं जो उनके विश्वास को समर्थन देते हैं और बाकी को भूल जाते हैं। यही ‘confirmation bias’ है।

उदाहरण के तौर पर, अगर आप मानते हैं कि “सुबह 5 बजे उठना सफलता लाता है”, तो आप अपने दिन की शुरुआत में जितनी मेहनत करेंगे, उतनी ही सफलता पाने की संभावना बढ़ेगी। यहाँ मेहनत है, जादू नहीं।

एक और आम अंधविश्वास है “लाल कपड़े पहनना दुर्भाग्य लाता है”। लेकिन अगर आप यह पहनते‑पहनते कोई महत्वपूर्ण काम नहीं करेंगे, तो कपड़े का रंग किस काम का? बात यह है कि भरोसा और कार्यशैली दोनों मिलकर परिणाम देते हैं।

अगर आप अंधविश्वास को तोड़ना चाहते हैं, तो छोटे‑छोटे प्रयोग करके देखें। जैसे, “काली बिल्ली देखी, फिर भी ठीक‑ठाक दिन बीता”, या “नॉर्थ‑ईस्टर्न दिशा में सोना नहीं पड़ा, और मेरे परीक्षाओं में असर नहीं पड़ा” – इन प्रयोगों से आप देखेंगे कि वास्तविकता में अंधविश्वास का क्या असर है।

बिल्कुल, अंधविश्वास को पूरी तरह हटाना जरूरी नहीं, अगर वह आपके जीवन में किसी को नुकसान नहीं पहुँचा रहा हो। लेकिन जब वह निर्णय‑लेने की प्रक्रिया में बाधा बन जाए, तो वैज्ञानिक सोच अपनाना बेहतर रहेगा।

भारत दैनिक समाचार में हम ऐसे ही बिंदुओं को लेकर बात करते हैं, चाहे वो खेल के आँकड़े हों, मौसम की रिपोर्ट हों या सामाजिक मुद्दे। इसी तरह अंधविश्वास पर भी खुलकर चर्चा करना ज़रूरी है, क्योंकि जानकारी से ही भ्रम दूर होता है।

तो अगली बार जब आप किसी अंधविश्वास का सामना करें, तो थोड़ा रुकें, सोचें और पूछें – क्या यह कारण‑परिणाम से जुड़ा है या सिर्फ एक कहानी है? इससे आपका दिमाग तेज़ रहेगा और आप सही फैसले ले पाएँगे।

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