पैरालम्पिक्स क्या है और क्यों है खास?
पैरालम्पिक्स एक अंतरराष्ट्रीय खेल इवेंट है जहाँ विकलांग एथलीट्स विभिन्न श्रेणियों में प्रतिस्पर्धा करते हैं। ये इवेंट ओलंपिक के बाद ही होते हैं और बहुत ही उत्साहजनक होते हैं। अगर आप कभी सोचा हो कि खेल सिर्फ आम लोगों के लिए होते हैं, तो पैरालम्पिक्स आपके सोच को बदल देगा।
पैरालम्पिक्स का इतिहास
पहला पैरालम्पिक 1960 में रोम में आयोजित हुआ था, जब 400 से कम एथलीट्स ने भाग लिया था। तब से यह इवेंट हर चार साल में ओलंपिक के बाद होता आया है और अब इसमें 200 से अधिक देशों की 4,000 से ज्यादा एथलीट्स भाग लेते हैं। समय के साथ नियम भी बदले, जैसे अब विभिन्न श्रेणियों में दौड़, तैराकी, शटल बॉल, और फैंसिंग जैसे खेल शामिल हैं।
भारत में पैरालम्पिक्स
भारत ने पहली बार 1984 में पैरालम्पिक में भाग लिया, लेकिन तब तक कोई मेडल नहीं मिला। 2016 के रियो पैरालम्पिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता – मलिक मोहित भारती ने शॉट पुट में जीत दर्ज की। इसके बाद 2020 की टोक्यो पैरालम्पिक में 19 मेडल मिले, जिसमें 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य शामिल थे। इस जीत ने भारतीय दिव्यांग एथलीट्स को नए लक्ष्य दिया।
अगर आप भारत की कुछ मशहूर पैरालम्पिक सितारों को देखना चाहते हैं, तो विराट सिंह, मनोज शान्तर, और रीना बांसल जैसे नाम याद रखें। उन्होंने न सिर्फ मेडल जीते, बल्कि देश के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बने।
पैरालम्पिक्स को देखना बहुत आसान है। आधिकारिक टीवी चैनल, ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और राष्ट्रीय खेल संघ की वेबसाइट पर लाइव प्रसारण होता है। आप अपने मोबाइल पर भी आधिकारिक ऐप डाउनलोड करके रियल‑टाइम अपडेट ले सकते हैं।
पैरालम्पिक्स में भाग लेने के लिए एथलीट्स को कठोर क्वालिफ़िकेशन रूल्स फॉलो करने पड़ते हैं। ये रूल्स एथलीट की शारीरिक क्षमताओं, उपकरण की आवश्यकताओं और प्रतियोगिता की श्रेणी के अनुसार तय होते हैं। अगर आप या आपका कोई जानने वाला दिव्यांग है और खेल में रूचि रखता है, तो अपने राज्य की खेल आयोग या राष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति से संपर्क कर सकते हैं।
सामाजिक दृष्टिकोण से पैरालम्पिक्स बहुत महत्वपूर्ण है। यह न सिर्फ एथलीट्स को मंच देता है, बल्कि सामान्य जन को भी विकलांग लोगों की क्षमताओं को समझने का मौका देता है। कई बार हम देखेंगे कि यह इवेंट कैसे लोगों के दिलों को छू लेता है, और कैसे नई पीढ़ी इस बात को अपनाती है कि "असफलता नहीं, कोशिश ही सफलता है।"
अगर आप पैरालम्पिक्स के बारे में और गहरी जानकारी चाहते हैं, तो इस साइट पर मौजूद विभिन्न लेख पढ़ें। यहां आपको नई खबरें, खिलाड़ी प्रोफ़ाइल, और इवेंट की ताज़ा अपडेट मिलेंगी। आगे भी ऐसे ही प्रेरणादायक कहानियों के लिए जुड़ें रहें।
नागालैंड के 40 वर्षीय भारतीय सेना के जवान होकाटो होतोज़े सेमा ने पेरिस पैरालम्पिक्स में पुरुषों की शॉट पुट F57 श्रेणी में कांस्य पदक जीतकर एक अद्वितीय कीर्तिमान स्थापित किया है। यह पल उनकी 22 साल की कठिन यात्रा और अद्वितीय दृढ़ता का परिणाम है। 2002 में जम्मू-कश्मीर के चौकिबल में एक आतंकवाद विरोधी मिशन के दौरान हुए लैंडमाइन विस्फोट में उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया था।
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