कर्नाटक के प्रियन्क खरगे का RSS पर प्रतिबंध अभियान: राजनीति में नई जंग
जब प्रियन्क मालिकार्जुन खरगे, कर्नाटक के ग्रामीण विकास एवं पञ्चायत राज, सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी मंत्री ने 12 अक्टूबर 2025 को अपने प्रमुख राजनीतिक कदम का ब्योरा लिखते हुए, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामैया को एक औपचारिक पत्र प्रस्तुत किया, तो बात बस यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर विवादास्पद संगठनों में से एक, राष्ट्रवादी स्वयंसेवक संघ (RSS) के सभी सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों में सक्रियता पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की। इस कदम ने न सिर्फ कर्नाटक की राजनीति को, बल्कि पूरे देश में धूम मचा दी।
परिचय: पत्र का मुख्य बिंदु और तत्काल प्रतिक्रिया
पत्र में खरगे ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "RSS की गतिविधियाँ युवा मनों को सीधे‑सीधे ब्रेनवॉश कर रही हैं, जो न ही राष्ट्र के हित में है और न ही समाज के लिये उपयोगी"। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि सरकारी‑सहायता वाले स्कूलों में बिना अनुमति के जंगली डंडे‑डायल ड्रिल कराना बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास को नुकसान पहुँचा रहा है। इस प्रकार की बातें भारतीय आज़ादी के बाद के कई उदारवादी नेता भी नहीं कहते थे। पत्र का टाइम‑स्टैम्प 12 अक्टूबर, 2025 को 08:20 UTC था, जबकि इसे सार्वजनिक रूप से 13 अक्टूबर को उजागर किया गया।
भाजपा का तेज़ जवाब: पोस्टर कैंपेन और बयान
पत्र के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कर्नाटक के कलाबुर्गी शहर में तेज़ी से पोस्टर अभियान शुरू कर दिया। सड़कों के प्रमुख कोनों—जैसे सरदार वल्लभभाई पटेल सर्कल—पर "जो भारत से प्यार करता है वह RSS से भी प्यार करता है" जैसे नारे लगे। भाजपा के प्रवक्ता ने कहा, "नीहरू और इंदिरा गोंधिया के समय में भी RSS को दबाया नहीं गया। यह एक राष्ट्रीय‑धरोहर जैसा संगठन है और इसका दमन लोकतंत्र के खिलाफ है।" यह बयान तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे बहस फिर से गरम हुई।
अन्य राज्यों के नेताओं की दृष्टि
इस विवाद को देखते हुए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनाविस ने 13 अक्टूबर को अमरावती में कहा कि "यह पूरी तरह से एक प्रचार‑प्रसार का काम है, कोई वास्तविक नीति नहीं"। वहीं छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा, "अगर कोई संगठन जो भारत विभाजन के विचार को अपनाता है, उसे उठकर बुरी बातें कहने का अधिकार नहीं है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।" इन टिप्पणियों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और आगामी राज्य चुनावों के संदर्भ में कई सवाल उठाए।
खरगे का पिता और RSS के बीच का इतिहास
भाजपा ने तुरंत यह भी उजागर किया कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 2002 में एक RSS मीटिंग में भाग लिया था। यह बात तब तक नहीं उभरी जब तक कि फोटो नहीं दिखाया गया। प्रियन्क ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट किया कि उस समय उनका पिता कर्नाटक गृह मंत्री थे और शिवाजीनगर (बेंगलुरु का संवेदनशील इलाका) में हुए एक बड़े RSS सम्मेलन में शांति बनाए रखने के लिये मौजूद थे। उन्होंने कहा, "अगर RSS ने हिंसा की ओर रुख किया, तो हमें जेल की सजा सुनाई जा सकती थी, इसलिए हमने पुलिस प्रमुख एवं कई पुलिस अधिकारियों को इस कार्यक्रम में मौजूद दिखाया।" उन्होंने भाजपा को चुनौती दी कि वे कोई दस्तावेज प्रस्तुत करें जो यह साबित करे कि मल्लिकार्जुन खरगे ने स्वयं आमंत्रण लेकर यह कार्यक्रम किया था।

व्यापक सामाजिक प्रभाव और विशेषज्ञों की राय
विज्ञान‑विधा के विशेषज्ञ और सामाजिक विश्लेषकों ने इस चर्चा पर विविध राय व्यक्त की। कुछ ने कहा कि "शिक्षा संस्थानों में किसी भी राजनीतिक या सामाजिक संगठन की अति‑प्रभावी गतिविधियों पर प्रतिबंध होना चाहिए क्योंकि यह छात्रों की स्वतंत्र सोच को रोक सकता है"। अन्य ने कहा, "RSS जैसे बड़े सामाजिक‑संगठन ने अस्पताल, स्कूल, ट्राइब्यूनल आदि में कई सामाजिक सेवा कार्य किए हैं, इन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित करना न तो व्यावहारिक है न ही संवैधानिक।" इस बीच, कई नागरिक समूहों ने अपने स्वयं के सर्वेक्षण के परिणाम बताये कि 57% उत्तरदाता मानते हैं कि स्कूलों में राजनीतिक ग्रुप की गतिविधियाँ होनी चाहिए, जबकि 38% इसे अस्वीकार करते हैं।
आगे क्या होगा? आगामी चुनाव और रणनीतिक चालें
कर्नाटक में 2026 की विधानसभा चुनावें निकट आ रही हैं। इस कारण, दोनों प्रमुख पार्टियों ने इस मुद्दे को अपने-अपने अभियान का हिस्सा बना लिया है। काँग्रेस का संघर्ष यह दर्शाता है कि वह सामाजिक‑सांस्कृतिक संगठनों की भूमिका को लेकर दृढ़ रुख अपनाना चाहता है, जबकि भाजपा इसको "राष्ट्रवादी भावना" के समर्थन में उपयोग कर रही है। अगले कई हफ्तों में दोनों पक्षों के बीच कई सार्वजनिक मंच, वाद-विवाद कार्यक्रम और सोशल मीडिया अभियान चलने वाले हैं। यदि यह विवाद और बढ़ता है तो यह कर्नाटक के भीतर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी नई धारा स्थापित कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
कर्नाटक में RSS गतिविधियों पर प्रतिबंध क्यों मांग रहा है?
प्रियन्क खरगे का मानना है कि RSS के डंडे‑ड्रिल, बैनर‑बोर्ड और धार्मिक प्रचार कार्यक्रम सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों में छात्रों को अनुचित रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे उनका मनोवैज्ञानिक विकास बिगड़ता है। उन्होंने इसे संविधान के मूल सिद्धांतों और सामाजिक समानता के खिलाफ बताया।
भाजपा इस मांग को कैसे देख रही है?
भाजपा ने इसे "राष्ट्रवादी भावना का उलंघन" कहा है और कहा है कि RSS भारत की सामाजिक‑सेवा कार्यों में अहम योगदान देता है। उन्होंने कैलाबुर्गी में पोस्टर अभियान शुरू करके इस प्रतिउत्सव को सार्वजनिक समर्थन देने का प्रयास किया।
मल्लिकार्जुन खरगे ने 2002 में RSS कार्यक्रम में क्यों भाग लिया था?
उस समय वह कर्नाटक गृह मंत्री थे। उन्होंने शांति बनी रखने के लिये और संभावित दंगों को रोकने हेतु पुलिस प्रमुख एवं कई अधिकारी के साथ कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज करवाई थी, न कि समर्थन के लिये।
इस विवाद का कर्नाटक के चुनावों पर क्या असर पड़ेगा?
दोनों पार्टियों ने इस मुद्दे को अपने-अपने चुनावी रणनीति का हिस्सा बना लिया है। कांग्रेस इसको सामाजिक समानता के लिये ट्रम्प बना रही है, जबकि भाजपा इसे राष्ट्रवादी भावनाओं के साथ जोड़ रही है। यह मुद्दा वोटर बेस को विभाजित कर सकता है और चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
क्या संविधान में किसी संस्था पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रावधान है?
संविधान में स्वतंत्र संगठनों के गठन की आज़ादी निहित है, परन्तु सार्वजनिक व्यवस्था और शिक्षा के क्षेत्र में गैर‑सरकारी संगठनों की गतिविधियों को सीमित करने की विशेष प्रावधान भी मौजूद हैं। अदालतें आम तौर पर सार्वजनिक शांति और समानता के हित में प्रतिबंध लगाती हैं, पर हर केस का विशिष्ट मूल्यांकन किया जाता है।
2 टिप्पणि
Hansraj Surti
अक्तूबर 13 2025सरकारी संस्थानों में विचारों का युद्ध एक प्राचीन कथा जैसा है। यह कथा हमें बताती है कि शक्ति और आध्यात्मिकता के बीच का संग्राम निरंतर चलता रहता है।
जब कोई संगठन स्कूलों में प्रवेश करता है तो वह केवल शिक्षा नहीं, बल्कि पहचान की भी डोर टांता है।
प्रियन्क खरगे ने इस बात को उजागर किया कि ब्रेनवॉशिंग का जाल युवा मन में बुनता है।
उनका यह तर्क कि RSS की डंडे‑ड्रिल मानसिक विकास को बाधित करती है, एक गहरी सामाजिक चिंता को दर्शाता है।
परंतु इतिहास यह भी सिखाता है कि महान आंदोलन अक्सर छोटे‑छोटे कदमों से शुरू होते हैं।
एक विचार को बदलना आसान नहीं, क्योंकि वह सामाजिक धागे में उलझा होता है।
कर्नाटक की राजनीति में इस कदम ने एक नई ज्वाला जलाई है।
भाजपा ने तुरंत प्रतिकार किया, क्योंकि वे अपने लोगों के बीच एकजुटता की भावना को बचाना चाहते हैं।
यही कारण है कि पोस्टर कैंपेन तेजी से फैला।
इन नारे, "जो भारत से प्यार करता है वह RSS से भी प्यार करता है", दर्शाते हैं कि राष्ट्रीय भावना को समूह पहचानों से जोड़ना कितना जटिल है।
विज्ञान‑विधा के विशेषज्ञों का भी इस पर अलग‑अलग मत है, कुछ प्रतिबंध की वकालत करते हैं तो कुछ सामाजिक सेवा की सराहना करते हैं।
समय के साथ यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस संघर्ष का परिणाम क्या होगा।
यदि चुनावी मैदान पर यह विषय प्रमुख बना रहा, तो यह कर्नाटक की भविष्य दिशा को निर्धारित कर सकता है।
एक लोकतांत्रिक समाज में यह सवाल उठता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी सीमित होनी चाहिए।
आखिरकार, यह लड़ाई केवल एक संगठन के खिलाफ नहीं, बल्कि विचारों की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन खोजने की है।😊
Naman Patidar
अक्तूबर 14 2025इस मुद्दे को राजनीतिक दांव के रूप में देखता हूँ।